"कामिनी एक अजीब दास्तां"।
कामिनी भाग 10
कामिनी अपनी सखी रात्रि को घायल अवस्था में इन मुर्दाखोर राक्षसो के सुपुर्द कर जाने लगती है तभी एक व्यापारी रात्रि से चिल्लाकर कहता है -"देखो, जिस की लाज बचाने के लिए तुमने अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की वही तुम्हारे प्राण और तुम्हारी अस्मत को हमारे सुपुर्द करके जा रही है पर तुम तनिक भी चिंता मत करो हम चारों भंवरे, तुम्हारे पुष्प जैसे शरीर का सारा रस चूस चूस कर पी जाएंगे, तुम्हारी आज की रात इतनी सुखमय बीतेगी की फिर कभी भविष्य में तुम्हें किसी पुरुष की आशा नहीं होगी"।
तभी दूसरा व्यापारी कहता है -"मेरा मत है, आज रात जी भर कर इसका शोषण कर लेते हैं और फिर इसकी हत्या कर इसे नदी में फेंक देते हैं क्योंकि यह बहुत बुद्धिमान, साहसी और चतुर है इसे जीवित छोड़कर भविष्य में कोई समस्या उत्पन्न करना उचित नहीं है"।
"मैं तुम्हारे विचार से सहमत हूं पर पहले इसे स्नान कराओ, इसके शरीर से भयंकर दुर्गंध आ रही है"। तीसरे व्यापारी ने रात्रि के कोमल होठों को छूते हुए कहा।
फिर दो व्यापारी रात्रि को घसीटते हुए नदी में ले जाते हैं और उसे उसी प्रकार नहलाते हैं, जिस प्रकार बलि के बकरे को बलि से पूर्व नहलाया जाता है, नहलाने के बाद रात्रि में और निखार आ जाता है, उसका सुंदर मुख उभरते आंचल और मैदान की तरह समतल कमर को देखकर चारों व्यापारी मन ही मन उत्साहित हो उठते हैं।
अब रात्रि यह भलिभांती समझ चुकी है कि उसका बचना असंभव है, वह घायल भी है और बेबस, लाचार भी और उसके हाथ भी बंधे हैं, इसलिए वह अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए कहती है।
"कोई थोड़ी मदिरा पिला दो, ताकि नशे में मुझे होश ना रहे और मुझे तुम्हारे सामूहिक कुकर्म से अधिक पीड़ा ना हो"।
एक व्यापारी रात्रि को अपने हाथों से प्याला पिला कर उसके होठों को छूता है और उसका दुपट्टा निकाल कर फेंक देता है, और कहता है -"अब तुम्हें वस्त्रों की कोई आवश्यकता नहीं है, मेरे व्यापारी भाइयों, 1 घंटे के लिए हम दोनों को यही एकांत में छोड़ दो, क्योंकि स्त्री और पुरुष के मिलन में एकांत महत्वपूर्ण है, जब मेरी वासना शांत हो जाएगी, तब एक-एक कर तुम भी अपनी वासना को शांत कर लेना"।
तभी दूसरा व्यापारी उत्तेजित भाव से कहता है -" तुमने हमें मूर्ख समझ रखा है, इस पर प्रथम अधिकार तुम्हारा कैसे हो गया"? " पहले चारों मित्र, मिलकर विचार-विमर्श कर लेते हैं, उसके बाद इस मन मोहिनी युवती को स्पर्श करना"।
"मैं तुम्हारे सुझाव से सहमत हूं, हम चारों ही इस युवती के बराबर अधिकारी हैं, इसलिए पहले हमें विचार-विमर्श कर लेना चाहिए, उसके बाद ही इसके सुंदर योवन का हरण करना चाहिए"। तीसरे व्यापारी ने कहा
वह चारों विचार विमर्श करते हैं तभी रात्रि कहती हैं -"मैंने हमेशा सुंदर राजकुमारों के साथ मिलन किया है, तुम जैसे कुरूप पुरुषों से मुझे घृणा आती है, पहले मेरी हत्या कर दो, उसके बाद मेरे शरीर को स्पर्श करना"।
"वासना का रूप और कुरूपता से कोई संबंध नहीं है कुमारी"! "अगर तुम अपनी वासना को हमारी तरह जागृत कर लोगी, तो हम कुरूप भी तुम्हें रूपवान प्रतीत होंगे"। एक व्यापारी ने व्यंग में कहा।
"एक प्याला मदिरा और पिलादो, फिर जिसे पहले आना हो, आ जाओ, पर कृपा कर कोई भी उस औषधि को मत खाना जो मेरी सखी तुम्हें देख कर गई है, क्योंकि उसके प्रभाव से मनुष्य की कामुकता 10 गुना अधिक बढ़ जाती है, तुम चार, चालीस के बराबर हो जाओगे, इसलिए विनती करती हूं, उसका उपयोग आज मत करना"। रात्रि ने निवेदन भाव से कहा।
"क्या सच में यह औषधि इतनी कारगर है"? एक व्यापारी ने अपने साथियों की ओर उत्सुकता से देखते हुए पूछा।
"मुझे इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं है"। दूसरे व्यापारी ने उत्तर दिया
"हमें इसका सेवन कर देखना चाहिए"। उत्साहित व्यापारी ने कहा
"अगर इसका दुष्परिणाम हुआ तो"। दूसरे व्यापारी ने संदेह व्यक्त किया
फिर तीसरे व्यापारी ने गंभीर भाव से कहा -"जो इस औषधि का सेवन करेगा, वही इस युवती का प्रथम अधिकारी होगा"।
"तभी वह उत्तेजित व्यापारी एक बूंद औषधि अपनी हथेली पर डालता है और संदेह पूर्वक उस औषधि को जीभ से चाटता है और कहता है -"इसमें तो मिठास है, मुझे इस औषधि पर कोई संदेह नहीं है"।
यह कह कर वह एक घूंट औषधि पी जाता है और पीते ही उसके गले में अत्यधिक पीड़ा का अनुभव होता है और वह अपना गला पकड़ कर नीचे गिर जाता है और तड़पने लगता है, अपने मित्र की यह दशा देखकर दूसरा व्यापारी चिल्लाकर कहता है।
" यह युवती बहुत ही चतुर है, इसने एक-एक कर हमारे तीन साथियों की हत्या की है, अगर हमने ओर व्यर्थ समय गवांया तो इसकी चतुराई से हमारे भी प्राण ले लेगी, इसलिए चलो अब तीनों एक साथ ही इस पर टूट पड़ते हैं और हमारे साथियों की हत्या का प्रतिशोध लेते हैं"।
वह तीनों रात्रि के करीब आते हैं और उसके वस्त्र निकालने लगते हैं तभी वह औषधि पिया हुआ व्यापारी उठ पड़ता है और जोर जोर से हंसने लगता है , अपने मित्र को हंसता देख, तीनों आश्चर्य में पड़ जाते हैं, तभी अपनी हंसी रोक कर वह कहता है -"अरे मूर्खों! " मुझे कुछ नहीं हुआ है, मैंने तो केवल एक छोटा सा व्यंग नाटक किया है, यह दिव्य औषधि बहुत ही कारगर है, आज ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे कामदेव मेरे भीतर समा गए हैं, तुम चाहो तो मेरा सारा धन ले लो पर यह औषधि मुझे दे दो, इस औषधि का लाभ अनमोल है"।
अपने साथियों की इतनी ऊर्जावान बात सुनकर वह तीनों भी बारी-बारी से औषधि को पी जाते हैं और औषधि के प्रभाव की प्रतीक्षा करते हैं, और तीनों में से एक व्यापारी कहता है ।
"हम तीनों थोड़ा टहल कर आते हैं, जब तक हम पर औषधि का पूर्णतया प्रभाव हो जाएगा, तब तक तुम बिल्कुल संपूर्णानंद के साथ अपने प्रथम अधिकार का आनंद उठाओ"।
"बिल्कुल उचित कहा मित्र"। प्रथम अधिकारी ने कहा
वह तीनों थोड़ी दूर टहलने चले जाते हैं और वह प्रथम अधिकारी अपने होठों को रात्रि के होठों के नजदीक लाता है, तभी रात्रि के सुंदर मुख पर रक्त की बारिश हो जाती है, क्योंकि कामीनी ने नाव के चप्पू से उस व्यापारी की गर्दन काट डाली है और उसकी गर्दन की रक्त इंद्री से खून की धार रात्रि के मुख पर पड़ रही है, कामिनी, रात्रि के हाथ खोलती है और रात्रि से पूछती है।
"वह तीनों राक्षस कहां गए"?
"वह तीनों यही आस पास है, चलो उनके आने से पहले यहां से भाग चलते हैं"। रात्रि ने सुझाव दिया
"तुमने मेरे लिए दो हत्या की है, अब मुझे तुम्हारे लिए 4 हत्याएं करनी पड़ेगी, कामिनी अपना हिसाब किताब हमेशा बराबर रखती है"। कमीनी ने दृढ़ता से कहा
"ज्यादा बहादुर बनने का प्रयत्न मत करो, उचित अवसर का सदुपयोग करो"। रात्रि ने कहा
"तुम मेरी सलाहकार ना बनो, अपनी सलाह अपने पास रखो"। कामिनी ने फिर क्रोधित भाव से कहा।
"फिर कामीनी उन तीनों को इधर-उधर ढूंढेने लगती है, कुछ ही दूर पर वह तीनों अपने पेट पकड़कर रो रहे हैं, क्योंकि उनको पेट में अत्यधिक पीड़ा हो रही है, इनकी यह दशा देखकर रात्रि को कामिनी का षड्यंत्र समझ आ जाता है और उसके सारे संशय नष्ट हो जाते हैं।
वह तीनों कामिनी और रात्रि से क्षमा मांगते हैं, क्योंकि वह असहाय और दर्द से अत्यधिक पीड़ित है पर कामिनी उन तीनों राक्षसों पर तनिक भी करुणा नहीं दिखाती और एक-एक करके तीनों की बड़ी बेरहमी से हत्या कर देती है और जब उसका क्रोध शांत हो जाता है, तब वह रात्रि से गले मिलकर खूब होती है और रात्रि भी रोती है।
फिर वह दोनों पुनः नदी में स्नान करती है और नाव में बैठकर नदी पार करती है, नदी पार करने के बाद वह 2 घंटों की पैदल यात्रा कर शंखपुर नगर पहुंचती है, जहां इन दोनों को भाड़े पर सराई में अर्थात धर्मशाला में ठहरने का उत्तम कक्ष मिल जाता है और भाड़े पर घोड़ा गाड़ी भी मिल जाती है सब इंतजाम हो जाने के बाद रात्रि और कामिनी सुकून की सांस लेती है और सो जाती है।
रात के 2:30 बज चुके हैं कामिनी और रात्रि गहरी नींद में सोई हुई है तभी इनके कक्ष के द्वार पर टक टक कुंडी बजने की आवाज सुनाई देती है।
इस आवाज के कारण रात्रि की नींद खुल जाती है और बहुत द्वार खोलने के लिए उठती है द्वार खोलते हीरात्रि एक ऐसा दृश्य देखती है जिसे देखकर उसकी रूह कांप उठती है और उसकी धड़कन उसके नियंत्रण से बाहर चली जाती है और वह जोर से चिखति है।
"आखिर क्या देखा रात्रि ने, अपने द्वार पर जिससे उसकी रूह कांप उठी"?
"छः हत्या करने वाली रात्रि और कामिनी इस मुसीबत को टाल पाएगी"?
अपने सभी द्वंद्व और प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़ते रहिए
"कामिनी एक अजीब दास्तां"
#chetanshrikrishna
क्रिया क्रिया
24-Apr-2022 08:53 PM
Whts next????
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दीपांशी ठाकुर
24-Mar-2022 02:20 PM
आपने तो सस्पेन्स बना दिया लास्ट में पढ़ कर रोमांच हो आया। अगले पार्ट के इंतजार में,,, जल्दी पोस्ट करिये प्लीज़🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔
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Sandhya Prakash
12-Mar-2022 10:39 PM
सस्पेन्स क्या देखा कामिनी ने ऐसा, अगले भाग का इंतजार
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